Last modified on 2 मार्च 2011, at 22:56

शिकार / वाज़दा ख़ान

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:56, 2 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

विषादयुक्त चेहरे
चेहरों पर चढ़े मुखौटे
टँगे हैं जैसे खूँटी पर

एक दो तीन चार...
गिनती में शायद वे दस हैं

तलाशते हुए कोई शिकार ।