स्वर्ग रचना
(नवीन जीवन दर्शन)
म्ुाझको यह विष पी पी कर
अमृत करना ही होगा।
इसी नरक को शुचि कर
मुझको, स्वर्ग विरचना ही होगा
भूली भटकी हुयी
नदी को भी सागर के पद पर जाकर
अपना सारा जीवन
अर्पित करना ही होगा
मेरे उर का सोना
जो है दबा हुआ मिट्टी में
उसे निकल बाहर ज्वाला में
पिघल चमकना ही होगा
मुझको यह विष पी पी कर
अमृत करना ही होगा
(स्वर्ग रचना कविता का अंश)