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किताबें / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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जीवन की मुस्कान किताबें

बहुत बडा़ वरदान किताबें ।

गूँगे का मुँह बनकर बोलें

बहरे के हैं कान किताबें ।

अन्धे की आँखें बन जाएँ

ऐसी हैं दिनमान किताबें ।

हीरे मोती से भी बढ़कर

बेशकीमती खान किताबें ।

जिन के आने से मन हरषे

ऐसी हैं मेहमान किताबें ।

क्या बुरा यहाँ क्या है अच्छा

करती हैं पहचान किताबें ।

धार प्रेम की बहती इनमें

फैलाती हैं ज्ञान किताबें ।

राहों की हर मुश्किल को

कर देती आसान किताबें ।

इस धरती पर सबके ऊपर

सबसे बड़ा अहसान किताबें ।

इनसे अच्छा दोस्त न कोई

करती हैं कल्याण किताबें ।

कभी नहीं ये बूढ़ी होती

रहती सदा जवान किताबें ।