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उम्र की चादर / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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उम्र की चादर की

बुक्कल मारकर

बैठी है लड़की

नीम उजाले में

इन्तज़ार का स्वेटर

बुनती जाती है

आँखें टिकी हैं

उम्र कुतरती सलाइयों पर

फिर भी फ़न्दे हैं कि


छूट- छूट जाते हैं

उम्र-

फूटे घडे़ के पानी की तरह

बूँद­ बूँद कर रिसती रहती है ।

लड़की

अधूरे स्वेटर की पीड़ा

उम्र के हर मोड़ पर

चुपचाप सहती है ।