Last modified on 21 मार्च 2011, at 20:34

नीली परछाइयाँ / वाज़दा ख़ान

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:34, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उदासी में लिपटा मन
स्मृति की तमाम परतों को
खोल रहा है

जिनमें बन्द है
केवल और केवल

अपने ही संघर्षों से जूझती
नीली परछाइयाँ ।