Last modified on 21 मार्च 2011, at 20:52

धूप के टुकड़े / वाज़दा ख़ान

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:52, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

छाँव को तलाशते
धूप के न जाने कितने टुकड़े
इकट्ठे हैं मेरे पास

क्या करूँगी इनका
सहेजकर रखने पर
टुकड़े
और भी तीखापन
ज़ाहिर करते हैं ।