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कच्चा दूध / प्रेमशंकर रघुवंशी

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भूरी भैंस जनी थी पहले
परसों ब्याई गैया
भर-भर लुटिया बाँटन लागीं
चीका घर-घर मैया ।

थूनी-थूनी पड़ा-पड़ेरू
थूनी-थूनी बछड़े
दादी जिनके रोम-रोम में
तेल ठीक से चुपड़े
रम्हा-रम्हा पूरी गौशाला
नचती ता-ता थैया ।

भर-भर मथनी मही बनाए
नैनू लोंदे-लोंदे
जो भी माँगन आए उनके
भौजी थके न दे दे
बासी खिर सुबह तक खाएँ
मिलकर बहना भैया ।

कच्चा दूध गमकता घर में
पुरा-पुरा मेम मट्ठा
बच्चों के मुँह सदा महकता
मक्खन खट्ठा-मिट्ठा
गौदोहन सरर-सरर से
उठे दूध पर घैया ।

गाय जने घर उत्सव होता
भैंस जने पर मेला
मेहमानों की होने लगती
हर दिन रेलम पेला
भोजन पे मनुहारें करते
घी देने परसैया ।

जब तक गाय-भैंस को गोरस
तब्तक द्वारे गंगा
लगता है परिवार गाँव में
अब तो पूरा चंगा
कुछ दिन को ख़ुशियों के तट पर
ले आई वह नैया ।