बीत रहा है जीवन कैसा
अब उस औरत के साथ तुम्हारा
क्या पहले से अच्छा
पहले चप्पू के लगते ही
पत्तन की सीमा-रेखा की भाँति
याद है मेरा टापू
(नहीं सिन्धु में वरन गगन में)
पीछे छोड़ दिया है
अरे प्राणियो
तुम बन सकते केवल भाई
और बहिन ही
प्रेमी कभी नहीं
उस मामूली औरत के संग
जिसमें नहीं दिव्य गुण कोई
बीत रहा है जीवन कैसा
जो साम्राज्ञी रही तुम्हारी
छोड़ गई है मन्दिर अपना
तुमने भी सिंहासन त्यागा
बीत रहा है जीवन कैसा
क्या तुम हरदम बहुत व्यस्त हो
या दुर्बल होते जाते हो
बिस्तर से उठने में भी क्या
अपने को निर्बल पाते हो
सतत निर्रथक बातों की ऐ याचक
तुम क्या कीमत दोगे
इतना क्षोभ परेशानी व्याकुलताएँ हैं
घर एक किराए पर ले लूँगी अब मैं
ओ मेरे अपने
ओ मेरे वरण किए
बतला दो इतना
उस औरत के संग में
जीवन बीत रहा है कैसा
क्या तुमको भोजन स्वादिष्ट मिला करता है
अगर अरुचि हो जाए उससे तो रोना मत
तुम जिसने रौंदा सिनाई को उसका जीवन
उस सुनहरी मूर्ति के संग में
बीत रहा है कैसा
कैसा लगता है अब जीवन
उस दुनियावी अनजानी औरत संग
सच बतलाना
उसे प्यार करते हो तुम क्या
लज्जा
क्या जीयस के क्रोध सरीखी
भाल तुम्हारे पर है चाबुक नहीं मारती
देती क्या धिक्कार नहीं है
जैसा तुमने चाहा
क्या जीवन वैसा है
क्या तुमने अपने को ख़ुश महसूस किया है
क्या गाते हो
गा सकते हो
ओ दीन पुरुष
तुम अमर-आत्मा की पीड़ा कैसे सहते हो
इतना अधिक मूल्य देकर के
जो है बेजा
उस नुमायशी टीम-टाम संग
बीत रहा है जीवन कैसा
केर्रार संगमरमर के पश्चात
प्लास्टर-पैरिस अब लगता है कैसा
(अनगढ़ पत्थर को तराश कर
मूर्ति बनाई गई देव की
लेकिन खण्ड-खण्ड हो टूटी
तुम
जिसने पिया लिलिथ अधरामृत
उस असभ्य के साथ बिताते जीवन कैसे
पेट अभी तक नहीं भरा क्या उससे
बाज़ारू जो एक खिलौना पास तुम्हारे
जादू अब तक क्या बाक़ी है उसका
उस दुनियावी औरत के संग
नहीं छठी इन्द्रिय है जिसमें
जीवन बीत रहा है कैसा
अपने दिल पर क्रॉस बनाओ
और बताओ
क्या तुम उसके साथ सुखी हो
अगर नहीं
क्या विफल हुए हो
क्या छिछलेपन की तरंग-सा
क्या भयावना
या वैसा ही जैसा मेरा
किसी और के साथ चल रहा
प्रिय बता दो
जीवन बीत रहा है कैसा
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक