Last modified on 17 अप्रैल 2011, at 23:46

कविता / अनंत भटनागर

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:46, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनंत भटनागर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> कविता का ‘क’, ‘ख’…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कविता का ‘क’,
‘ख’, ‘ग’
खग बन गया है
वि
विवश है
और ‘ता’
तालियाँ
तलाश रहा है।
कविता बन रही है।
कविता बिगड रही है।