दूर सागर पार
पराए देश की अनजानी राहें ।
पर शीलवान तरुओं की
गुरु, उदार
पहचानी हुई छाँहें ।
छनी हुई धूप की सुनहली कनी को बीन,
तिनके की लघु अनी मनके-सी बींध, गूँथ, फेरती
सुमिरनी,
पूछ बैठी :
कहाँ, पर कहाँ वे ममतामयी बाँहें ?
दूर सागर पार
पराए देश की अनजानी राहें ।
पर शीलवान तरुओं की
गुरु, उदार
पहचानी हुई छाँहें ।
छनी हुई धूप की सुनहली कनी को बीन,
तिनके की लघु अनी मनके-सी बींध, गूँथ, फेरती
सुमिरनी,
पूछ बैठी :
कहाँ, पर कहाँ वे ममतामयी बाँहें ?