कलि वर्णन-2
(85)
बेद -पुरान बिहाइ सुपंथु , कुमारग , कोटि कुचालि चली है।।
कालु करालु, नृपाल कृपाल न , राज समाजु बड़ोई छली है।।
बर्न -बिभाग न आश्रमधर्म , दूनी दुख-दोष-दरिद्र-दली हैै।।
स्वारथ को परमारथको कलि रामको नामप्रतापु बली है।।
(86)
न मिटै भवसंकटु, दुर्घट है तप, तीरथ जन्म अनेक अटो।।
कलिमें न बिरागु, न ग्यानु कहूँ, सबु लागत फोकट झूठ-जटो।।
नटु ज्यों जनि पेट -कुपेटक कोटिक चेटक -कौतुक-ठाठ ठटो।।
तुलसी जो सदा सुखु चाहिअ तौ, रसनाँ निसि -बासर रामु रटो।।