Last modified on 21 मई 2011, at 04:20

त्रिशंकु / नवनीत पाण्डे

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:20, 21 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवनीत पाण्डे |संग्रह=सच के आस-पास }} {{KKCatKavita‎}} <poem>मान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

माना हमने गलती की
तुम्हें सर चढाया
अपने कंधे बैठाया
पर क्या करते?
इसके सिवा चारा न था
कोई दूसरा चमकीला तारा न था
तारा, जो दिखाता हमें
हमारे सपनों का एक बड़ा तारा
पर तुमने तो
निगल लिया खुद को ही
सूरज बनने की चाह में
त्रिशंकु
सूरज रहे न तारा
अब क्या विचार है तुम्हारा
माना- हमने गलती की
तुम्हें सर चढाया
इसलिए नहीं कि तुम
हमें बौना कर दो
हम बौने
हा! हा! हा!
देखो! अच्छी तरह देखो!
तुम्हारी ही जमात के अन्य तारे
तुम से दूने चमक रहे हैं
तुम्हें देख रहे हैं- त्रिशंकु