Last modified on 23 मई 2011, at 22:14

स्मृतियां / राकेश प्रियदर्शी

योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 23 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश प्रियदर्शी |संग्रह=इच्छाओं की पृथ्वी के …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


जब भी स्मृतियों की गलियों से होकर

गुज़रता हूं,

मन के आकाश में

पुरखों के लहूलुहान अतीत का

बादल छा जाता है और पूरे वजूद में

एकाएक बेचैनी की बिजली चमकने

लगती है


अन्तःस्थल विषाद के कांटों से भर जाता है,

सीने से कराहने की आवाज निकलती है-‘आह’,

ये स्मृतियां ही हैं जो कलम उठाने को

बाध्य करती हैं और अचानक आक्रोश

के म्यान से निकलकर थमा देती है

शब्दों की तलवार


ये स्मृतियां सिमटकर यथास्थितिवाद

में निष्क्रिय नहीं रहना चाहती,

क्रांतिकारी परिवर्तन करने को आक्रोश

की आग से भर देती है हमें ये स्मृतियां