Last modified on 12 जून 2011, at 16:21

कहौ सो बिपिन हैं धौं केतिक दूरि।/ तुलसीदास

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:21, 12 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=ग…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(13)

कहौ सो बिपिन है धौं केतिक दूरि |

जहाँ गवन कियो, कुँवर कोसलपति, बूझति सिय पिय पतिहि बिसूरि ||

प्राननाथ परदेस पयादेहि चले सुख सकल तजे तृन तूरि |

करौं बयारि, बिलम्बिय बिटपतर, झारौं हौं चरन-सरोरुह-धूरि ||

तुलसिदास प्रभु प्रियाबचन सुनि नीरजनयन नीर आए पूरि |

कानन कहाँ अबहिं सुनु सुन्दरि, रघुपति फिरि चितए हित भूरि ||