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प्रीत-7 / विनोद स्वामी

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राह बगती रो तेरो पल्लो
झाड़की रै कांटै में
अड़’र छूटग्यो।
तूं चिमकती-सी मुड़ी
अर गाळ काढी-
मरज्याणा, अै झाड़का ई
तेरै बरगा होग्या।