नज़र नज़र से ही टकराए और कुछ मत हो
कभी तो हमसे वो शरमाये, और कुछ मत हो
कभी तो तुमको भी भाता था बोलना हमसे
कभी तो हम भी तुम्हें भाये, और कुछ मत हो
मिलो कहीं तो निगाहों से पूछ भर लेना
ज़रा-सा होंठ ही थर्राए, और कुछ मत हो
मिली है एक ही जीवन में यह बहार की रात
कहीं न यह भी निकल जाये, और कुछ मत हो
बुला लिया है उसे घर पे हमने आज, मगर
मना रहे हैं नहीं आयें, और कुछ मत हो
गुलाब देख तो लेंगे उन्हें आते-जाते
नज़र भले ही न मिल पाए, और कुछ मत हो