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भोर होनी थी, होके रही / गुलाब खंडेलवाल

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भोर होनी थी होके रही
मेरे सपनों को खोके रही

आपने तो बहुत छूट दी
प्यास मेरी डुबोके रही

प्रीत ने कब किसीकी सुनी!
अपना आँचल भिगोके रही

ज़िन्दगी थी किरन प्यार की
तीर पर आँसुओं के रही

सारे उपवन पे छाये गुलाब
गंध कब किसके रोके रही