अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है
पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है
तारों को देख कर ही नहीं आयी उनकी याद
कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है
मैं जिन्दगी को रख दूँ छिपाकर कि मेरे बाद
सुनता हूँ, उन्हें इसकी ज़रूरत भी हुई है
दुनिया की भीड़भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं
गुम इसमें मेरे प्यार की मूरत भी हुई है
काँटों में रखके पूछ रहे हो गुलाब से! --
'कोई तुम्हारे जीने की सूरत भी हुई है?'