Last modified on 9 जुलाई 2011, at 22:04

प्रेम / एम० के० मधु

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:04, 9 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखता हूँ प्रेम
बसंत की हर सुबह
सरसों के पीले फूलों पर

सुनता हूँ प्रेम
हर बारिश में
नन्हीं-नन्हीं बूंदों से

महसूसता हूँ प्रेम
हवाओं के ताल पर
बिखरते तेरे गेसुओं में

बाँटता हूँ प्रेम
जीवन में
आधा मुझे, आधा तुझे ।