दुष्यंत कुमार की कविताएं
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- मत कहो, आकाश में कुहरा घना है / दुष्यंत कुमार
- बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं / दुष्यंत कुमार
- एक आशीर्वाद / दुष्यंत कुमार
- हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए / दुष्यंत कुमार
- इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है / दुष्यंत कुमार
- आज सड़कों पर / दुष्यंत कुमार
- कहीं पे धूप / दुष्यंत कुमार
- विदा के बाद प्रतीक्षा / दुष्यंत कुमार
- आग जलती रहे / दुष्यंत कुमार
- चाँदनी छत पे चल रही होगी / दुष्यंत कुमार
- कहाँ वो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये / दुष्यंत कुमार
- ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा / दुष्यंत कुमार