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प्रिया को दे वियोग परिताप, / गुलाब खंडेलवाल


प्रिया को दे वियोग परिताप,
कैसे मन माना कि कभी आये न पलटकर आप!
 
एक क्रौंच खग का सुन क्रंदन
लिखी आदि कवि ने रामायण
कैसे सहा किये पत्थर बन
कवि निज प्रिया-विलाप!
 
राम-वियोग-विकल वैदेही
गयी आपको रुला भले ही
पर रत्ना की सुधि आते ही
हाथ गये क्यों काँप!
 
जग को तो दे रहे अमृत, पर
पत्नी तड़पा की विष पाकर
राम-मन्त्र दे उसने कविवर
किया कौन-सा पाप!

प्रिया को दे वियोग परिताप,
कैसे मन माना कि कभी आये न पलटकर आप!