Last modified on 26 सितम्बर 2011, at 04:52

पति-पत्नी / रूपसिंह राजपुरी

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:52, 26 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपसिंह राजपुरी |संग्रह= }} {{KKCatMoolRajasthani}} {{KKCatKavita‎}}<poem>पत…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पति-पत्नी गै बीच मैं,
एकर बहस छिड़ी बड़ी सोणी।
पत्नी बोली- इसो कोई विभाग बताओ,
जकै मैं लुगाई कोनी।
राजनीति, धर्म, थानेदारी, गुण्डागर्दी,
म्हे तो सब जगा बढ़गी हां।
ओर तो ओर म्है तो,
चांद पर भी चढगी हां।
पति गै बात अड़गी,
पण झट बण काढी।
बोल्यो, दमकल विभाग मैं,
थे एक भी कोणी लाडी।
खिसियांती सी पत्नी बोली,
बो तो म्हे जाणगै छोड़यो है,
थे आ बात जाणो कोणी,
म्हारो काम आग लगाणो है, बुझाणो कोनी।