Last modified on 30 सितम्बर 2011, at 21:16

हम से भागा न करो दूर गज़ालों की तरह / जाँ निसार अख़्तर

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:16, 30 सितम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम से भागा न करो दूर गज़ालों की तरह
हमने चाहा है तुम्हें चाहने वालों की तरह

खुद-बा-खुद नींद-सी आँखों में घुली जाती है
महकी महकी है शब्-ए-गम तेरे बालों की तरह

और क्या इस से जियादा कोई नरमी बरतूं
दिल के ज़ख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह

और तो मुझ को मिला क्या मेरी मेहनत का सिला
चाँद सिक्के हैं मेरे हाथ में छालों की तरह

ज़िन्दगी जिस को तेरा प्यार मिला वो जाने
हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह .