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प्रेम / प्रमोद कौंसवाल

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मैंने उसे छुआ
उस तरह
उतनी देर
जैसे पत्ते को छूकर
चुपचाप गिर जाए
ओस की एक बूंद

मुझे पता नहीं था
ओस के गिरने के साथ
इस तरह गिर जाना था
पत्ते को भी