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अन्ततः बस... / विमलेश त्रिपाठी

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एक बहुत ध्ीमी बून्द
अमलतास के ललछौहूं झोंझ पर
और एक सर्द अलसाये मानस पर
एक बून्द सिरिस के छतनार माथे पर
और एक
हमारे घरौंदे की दहलीज पर
हमारे वजूद के बीच भी
एकदम शान्त
एक बून्द
आकाश की छाती पर घनघोर
ध्रती की कोख में एक आखिरी
बस अन्तिम
एक ध्ध्कती कविता के
बिल्कुल अन्तिम शब्द की तरह
अकेली एक बून्द
और अन्ततः
सापफ सोनल आकाश की दीर्घ विस्तार
अन्ततः बस...