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भूख / जितेन्द्र 'जौहर'

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कुत्ते को रोटी खिलाता देखकर
एक बूढ़े भिखारी ने
साहब के आगे अपना हाथ फैलाया
याचनापूर्वक गिड़गिड़ाया!

तभी साहब ने मुँह खोला
और भिखारी को टरकाते हुए बोला-
"जानते हो... देशी घी से सनी है,
ये रोटी तो सिर्फ़ कुत्ते के लिए बनी है!"

इतना सुनते ही-
वह भूखा भिखारी
अपने दोनों घुटने और हाथ
ज़मीन पर टेककर एकदम तन गया,
और अगले ही पल
करुण स्वर में बोला-
"लीजिए...बाबू जी,
अब मैं भी ‘कुत्ता’ बन गया!"

इस घटना में-
भूख जीती है,
और इंसानियत हारी है।
हे अन्नदाता...!
तेरी पचास ‘ग्राम’ की रोटी
पचास ‘किलो’ के आदमी पर भारी है!!