Last modified on 24 नवम्बर 2011, at 13:37

म्हारौ दान / अर्जुनदेव चारण

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:37, 24 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्जुनदेव चारण |संग्रह=घर तौ एक ना...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


ओ थारौ माथौ
ऐ थारी आंखियां
ऐ थारा हाथ
क्यूं है
झुकियोड़ा
किणनै देवै है
थूं
म्हारौ दांन ?

धरती
अगन
हवा
अर उजास नै
आचमण सूं पैला
देख
आपरी हथाळियां
नेह रा हबोळां नै
अभिमंत्रित जळ में
ढळण सूं पैला
सोच
उठ
सांभ माथै नै
निजरां नै
देखण दै आभौ
हाथां में करार भर
इण दांन नै
कुदरत रै आंगै ढाळ
ज्यूं सूंपै सूरज
किरण
ज्यूं सूंपै रूंख
फळ

म्हारै हक में ई
थारै होवण री
तासीर छिपियोड़ी है