Problem reports list - #8707
page par pura nahi dikh raha hai paribhraman rachnaye pade aane ke kaaran
प्रॉब्लम रिपॉर्ट क्या होती है, और सिसयोप इसे 'फ़िक्स' कैसे करते हैं मुझे ठीक-से नहीं मालूम। पर ऊपर ये जो किसी की दिक़्क़त लिखी है मुझे भी होती थी। होता ये था कि कविता के आगे डिब्बे आ जाते थे, और आपको लाइन के पहले शब्द दिखाई नहीं देते थे। मुझे आशंका है कि ये दिक़्क़त हज़ारों लोगों को, हमारे कोश से दूर ले जाती है। नज़ारा यूँ होता है, इस इमेज से आपके पन्ने में गड्डमड्ड हो गई है, बाद में मिटा दीजिएगा।
इसका दिक़्क़त का आपने क्या हल बताया है? मैं जानना चाहता हूँ।
वैसे मैंने दो सालों में इसके तीन हल निकाले हैं, जो बहतरी के क्रम से इस तरह है:
- अकाउंट बनाओ, और कोई क्वार्ट्ज़ वाली स्किन चुन लो। हमारे ऐडमिनिस्ट्रेटर ने मोनोबुक स्किन चुनी हुई है।
- प्रिंटेबल वर्ज़न से पढ़ो।
- टैक्स्ट को कॉपी करके नोटपैड में पेस्ट करके पढ़ो।
ये दिक़्क़त क्या सिर्फ़ इंटरनैट ऐक्सप्लोरर 6 में ही आती है? विकिपीडिया पर ऐसा कुछ लिखा था कि, आइ ई 6 पर विकिपीडिया सही से नहीं दिखती, फायरफोक्स, ओपेरा, और आइ ई 7, पर ये दिक्कत नहीं आती। कहाँ पढ़ा था, ये मैं आपको ढूंढ के बता दूँगा। --सुमितकुमार कटारिया(वार्ता) १०:२९, २३ अप्रैल २००८ (UTC)
लीजिए, आपने अभी तक ये चिट्ठी पढ़ी नहीं होगी, कि एक और ऐसी दिक़्क़त आ गई: Due to overlapping of Index (i.e. blue portion) poems are not legible fully.Pl correct it. Thanks (8756)
क्वार्ट्ज़ वाली स्किनों में से एक को, ऐडमिनिस्ट्रेटर (मतलब अपने ललित जी) द्वारा, डिफ़ॉल्ट स्किन बना देने पर, ऐसी दिक़्क़त नहीं होगी। मेरे हिसाब से तो यही हल है, बाक़ी आपका हल जानना चाहता हूँ।
--सुमितकुमार कटारिया(वार्ता) ०२:५८, २५ अप्रैल २००८ (UTC)
बिंदु और चंद्रबिंदु के नियम कोई पेचीदा नहीं हैं, मैंने ललित जी को चिट्ठी में वर्तनी मानक वाले पन्ने के जिस पुराने संस्करण का ज़िक्र किया था, उसके सही/ग़लत वाल सैक्शन देखिए, और हेमेंद्र जी के पन्ने पर जाइए, उस पर अनिल जी का जवाब पढ़िए। --Sumitkumar kataria १६:२८, १४ अप्रैल २००८ (UTC)
मैंने जल्दबाज़ी में कोई कविता टाइप की, उसमें ग़लत शब्द टाँक दिए, उसके बाद उसे सही कर दिया, और ये सब थोड़ी सी कविताओं में ही। और इस ग़लती की वजह से मुझे कविताएँ जोड़ने के साथ-साथ प्रूफ़रीड का भी श्रेय दिया जा रहा तो ठीक है, मुझे कोई उज्र नहीं।
मैंने जो आपकी ग़लती निकाली है उसे सुधारने के लिए आपको तीव्र होने की बजाए लगन की ज़रूरत है, जिसकी आपमें कोई कमी नहीं। एक निशान को दूसरे निशान में बदलने के लिए कोई ऐसी कौन-सी ख़ास लियाकत चाहिए, पर ऐसा हज़ार बार करना पड़े, तो उसके लिए लगन चाहिए। हम सबको मिलकर इस चंद्रबिंदु को सुधारना होगा। --Sumitkumar kataria १३:२७, १४ अप्रैल २००८ (UTC)
नमस्कार प्रतिष्ठा,
कविता कोश में आपका योगदान बहुत ही सराहनीय है। इतना सारा योगदान देख कर मन प्रसन्न हो जाता है। कोश आपके इस योगदान को स्मरण रखेगा।
आज आपने महादेवी वर्मा और जयशंकर प्रसाद की बहुत से रचनाएँ कोश में जोड़ी हैं -क्या ये रचनाएँ रचनाकारों के किसी कविता संग्रह से ली गयी हैं? यदि हाँ, तो कृपया संग्रहों के नाम बतायें -ताकि संग्रह का अलग से पृष्ठ बना कर उस संग्रह की सारी रचनाएँ संग्रह के पन्ने पर स्थानांतरित की जा सकें।
शुभाकांक्षी
--Lalit Kumar १९:५६, २० सितम्बर २००७ (UTC)
ललित जी
आपका आभार|
जयशंकर प्रसाद कि रचनाऒ मे जिन नाम मे "झरना" साथ मे है वॊ साभी "झरना" से ली गई है|परन्तु इनका sequence मुझे पता नही|
प्रतिष्ठा
नमस्ते प्रतिष्ठा,
मैनें "झरना" के लिये अलग से पन्ना बना दिया है। झरना में यदि और पृष्ठ बनाने हों तो उनके लिंक इसी नये पन्ने पर बनाये। "कानन-कुसुम" के लिये आपके द्वारा बनाया गया पन्ना सही है। आप इस काम को आगे बढाईये। "सूर सुखसागर" को भी आप जोड़ सकती हैं। यदि कोई समस्या आये तो बताईयेगा। गलती हो जाएगी -ऐसी कोई चिंता मन में ना रखें -आप तो जानती ही हैं कि कविता कोश में सारी गलतियाँ सुधारी जा सकती हैं।
शुभाकांक्षी
--Lalit Kumar ०९:२०, २५ सितम्बर २००७ (UTC)
वर्तनी (Spelling) की गलतियाँ
प्रतिष्ठा,
चूंकि आपको सूरदास जी की रचनाएँ स्वयं टाइप नहीं करनी पड़ रही हैं -सो आप copy-paste कर के save करने से पहले वर्तनी (spelling) kकी त्रुटियों को सुधार दें। दो शब्दों का आपस में जुड़ा होना इन रचनाओं के text में सबसे अधिक पायी जाने वाली गलती है। इन गलतियों को कृपया साथ-साथ सुधार दें -अन्यथा इन्हें बहुत समय तक नहीं सुधारा जा सकेगा।
शुभाकांक्षी
--Lalit Kumar २१:५८, २७ सितम्बर २००७ (UTC)
प्रतिष्ठा,
आपने तो सूरदास जी की रचनाओं का कविता कोश में अम्बार लगा दिया है। लेकिन मुझे अब लगने लगा है कि ये सारी रचनाएँ शायद ठीक से सूचीबद्ध नहीं हैं। संख्या इतनी ज़्यादा है कि थोड़ा confusion होने लगा है। क्या आप कभी इस बारे में Skype, GTalk, MSN या Yahoo Messenger पर बात कर सकती हैं?
शुभाकांक्षी
--Lalit Kumar १३:५६, ३ अक्टूबर २००७ (UTC)
कल मैने जो रचनाऐ जोडी उन के अलावा सभी सही sequence मे है| आप मुझ से बात कर सकते है | मै रोज ७:00-८:00 IST online आती हुँ। अगर ये समय आप की सुविधानुसार नहीं है तो शनीवार और रवीवार को हम समय निर्धारित कर सकते है|
प्रतिष्ठा
भूल-ग़लती तो पहले से ही मौजूद थी
प्रतिष्ठा जी, कल आपने मुक्तिबोध की ये कविता दुबारा डाल दी। आपने ग़लती के ग पर नुक्ता नहीं लगाया, बस इन दोनों कविताओं में ये फ़र्क़ रह गया, आपने मुक्तिबोध की सूची पर गौर नहीं किया।
--Sumitkumar kataria ०२:३३, २३ फरवरी २००८ (UTC)
26 फ़रवरी को जो आपने अज्ञेय की कविताएँ बदली थी।
आपने साँचे डाल दिए, इसके अलावा भी एक काम है। सवेरे उठा तो धूप खिली थी / अज्ञेय ये कविता कितनी नावों में कितनी बार संग्रह में उधार / अज्ञेय के नाम से मौजूद है, और मेरे हिसाब से यही इसका सही शीर्षक है। इसके अलावा सूची में अज्ञेय की इन कविताओं के शीर्षकों में चंद्रबिंदु के इस्तेमाल में ग़लती है, जो कि दरअसल छापने वालों की है। तफ़सील के लिए आप यहाँ और कविता कोश में वर्तनी के मानक वाले पन्ने पर जाइए। वर्तनी मानक वाले पन्ने के अनुस्वार और अनुनासिक के सैक्शन में मैंने इससे इतर एक नियम पर एक आपत्ति की थी, उसे शायद रिवर्ट कर दिया गया है, मैं उस नियम को वापस डालने के लिए ललित जी से बात करूँगा। ख़ैर, ये चंद्रबिंदु वाली ग़लती इतनी आम हो गई है कि इसे सही समझा जाने लगा है। आप इन तीन कविताओं को सही नामों पर मूव करके मूल पन्नों को मिटा दीजिए: आँगन के पार द्वार / अज्ञेय, चाँदनी जी लो / अज्ञेय, मैं ने देखा, एक बूँद / अज्ञेय । शीर्षक में हिज्जों की ग़लती हो तो दूसरे ऐडिटरों को मुश्किल हो जाती, कविता के अंदर की ग़लती तो आसानी से ठीक की जा सकती है।
और फ़ोकिस में औदिपौस / अज्ञेय इस में मैंने गड़बड़ की थी, इसे भी मिटा दीजिए, फ़ोकिस में ओदिपौस / अज्ञेय सही वाला पन्ना है जिसे औदिपौस को मूव करके बनाया था।
वार्ता --Sumitkumar kataria ०९:१२, ९ अप्रैल २००८ (UTC)
"अंधेरे में - अज्ञेय" की पंक्ति
नमस्ते प्रतिष्ठा जी
"अंधेरे में - अज्ञेय" की पंक्तिमें आपका परिवर्तन देखा | पिछला परिवर्तन "कन्धे पर हाथ रखा" से "कन्धे पर रक्खा हाथ" मेरे द्वारा किया गया था जिसे आपने पुनः वैसा ही कर दिया | यह परिवर्तन मैने प्रकाशित संस्करन (published edition or hard copy ) में से देख कर किया | प्रकाशित संस्करन में शब्दों की sequance इसी प्रकार दी गयी है | अतः अभी उसे पुनः वैसा ही कर रहा हूं | त्रुटि होने पर सूचित करें |
अमित