प्रेम में मगन रहना चाहता हूँ फिर भी चिथड़ा ही रहता हू । नव जलद के सर पर हाथ फेर कर प्यास मिटाता हूँ । उग नहीं रही आत्मा की मिट्टी में कोई फ़सल केवल टूटी हुई सुई ढूँढ़ता रहता हूँ ।