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अपमान / भवानीप्रसाद मिश्र

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अपमान का इतना असर मत होने दो अपने ऊपर

सदा ही और सबके आगे कौन सम्मानित रहा है भू पर

मन से ज्यादा तुम्हें कोई और नहीं जानता उसी से पूछकर जानते रहो

उचित-अनुचित क्या-कुछ हो जाता है तुमसे

हाथ का काम छोड़कर बैठ मत जाओ ऐसे गुम-सुम से !