ये ज़िंदगी जो बिन तेरे गुज़र रही है मेरी,
यहाँ किस दर्जा उदासी है, तुझे क्या मालूम?
सिसकियाँ भरता है दिन,
ज़ार-ज़ार<ref>बहुत ज़्यादा, बिलख बिलख के</ref> रोती है,
रात किस तरह बताऊँ
कि बसर होती है,
और इस सबसे बेखबर तू कहाँ होता है?
तेरा पता न ठिकाना कोई बताए मुझे,
तेरे होने का कोई तो यकीं दिलाए मुझे,
कभी दुनिया से,
खयालों की,
निकल कर मेरी,
मुझे झूठी ही तसल्ली दे जा…
मेरा शरीक-ए-ज़िंदगी<ref>जीवन-साथी</ref>
न बन सके न सही,
मेरी दुनिया-ए-तस्सव्वुर<ref>खयालों की दुनिया</ref>
को तजल्ली<ref>रौशनी</ref> दे जा!
1996
शब्दार्थ
<references/>