रचना श्रीवास्तव की हाइकु-दुनिया इन सबसे अलग रंगों की पिटारी से भरी है । वहाँ वात्सल्य का पितृगृह के प्रति कन्याओं के प्रेम का अछूता , अनूठा रूप बिखरा है । बेटा प्रवास में है (शायद शिक्षा प्राप्ति के लिए ) । माँ की ममता घर में हर उस चीज़ को दुलारती है जो उसके बेटे की है-‘ बेटे का कोट रोज़ धूप दिखाती प्रतीक्षा में माँ’
बेटी अपने पितृगृह में है, उसे भविष्य का ज्ञान है कि कहीं दूर उसे अपना घरौंदा बसाना है,उड़ जाना है । आज की ज्वलन्त समस्या -प्रतिभा-पलायन से उत्पन्न उन माता-पिताओं की है जो बुढ़ापे की असह्य वेदना अकेले भुगतने को मज़बूर हैं-
डॉलर छीने बेसहारा की लाठी सूना आँगन