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मौन निमंत्रण / कल्पना लालजी

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टिमटिमाते तारों के बीच एक दिन मैं खो जाऊंगी
बिन बोले और बिन बतलाये मौन मैं हो जाऊंगी
फूलों की खुशबू में बस तब पास तुम्हारे आउंगी
गीत प्रणय के झरनों के संग नित प्रतिदिन मैं गाऊंगी
पत्तियों की सरसराहट जब तुमको चौंका जाये
बालियाँ गेहूं की भी जब सर- सर- सर कर लहराए
पंछियों के कलरव में छिप मैं मन सबका बहलांऊगी
पर्वतों पर कारी बदरी जो एक दिन छा जाये
रिमझिम वर्षा की बूंदे जब साँझ सवेरे गाएं
झिलमिल करती बूंदों में तब मैं आकर मुस्काऊँगी
अमावस की कालिमा गर् मन विचलित कर जाये
असंख्य प्रयत्नों के बाद भी गर् नीरवता न जाये
सांसों के स्पंदन में रच मैं सांसे तेरी महकाऊँगी
टिमटिमाते तारों के बीच एक दिन मैं खो जाऊंगी
बिन बोले और बिन बतलाये मौन मैं हो जाऊंगी