Last modified on 22 अगस्त 2012, at 18:40

लमहा / नीना कुमार

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:40, 22 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीना कुमार }} {{KKCatGhazal}} <poem> झड़ता रहा शज...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झड़ता रहा शजरे-हयात<ref>ज़िन्दगी का पेड़</ref> से हर इक पल लमहा
गिरता रहा वादी-ए-पुरखार<ref>सूखी पत्तियों की वादी</ref> में मुसलसल<ref>लगातार</ref> लमहा

ज़र्द<ref>लाल</ref> होती गई है ये माज़ी-ए-वादी<ref>बीते समय की वादी</ref> फिर भी
मुन्तज़िर<ref>प्रतीक्षारत</ref> है नए रंग लिए, मिले कल लमहा

लमहे की मंजिल क्या है, है शबनम की तरह
कभी पुरनम<ref>भीगी हुई</ref>, कभी बन जाए है ग़ज़ल लमहा

देखो सब्ज़<ref>हरे</ref> नहीं होते, यहाँ दोबारा से नज़ारे
सिलसिले-ज़ीस्त<ref>जिन्दगी का सिलसिला</ref> हर पल है नया छल लमहा

जब चाहा के मुस्तक़िल<ref>लगातार</ref> इक लमहे में रहें हम
'नीना' क्यूँ पाया, उसी वक़्त, गया बदल लमहा

शब्दार्थ
<references/>