सुनत नगारे चोट बिगसै कमलमुख,
अधिक उछाह फूल्यो मात है न तन में.
फेरै जब साँग तब कोऊ नहीं धीर धरै,
कायर कँपायमान होत देखि मन में .
कूदि के पतंग जैसे परत पावक माहि,
ऐसे टूटि परै बहु सावंत के गन में .
मारि घमासान करि सुंदर जुहरे श्याम,
सोई सूरबीर रुपि रहै जाय रन में.