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सुनत नगारे चोट / सुंदरदास

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सुनत नगारे चोट बिगसै कमलमुख,
           अधिक उछाह फूल्यो मात है न तन में.
फेरै जब साँग तब कोऊ नहीं धीर धरै,
           कायर कँपायमान होत देखि मन में .
कूदि के पतंग जैसे परत पावक माहि,
           ऐसे टूटि परै बहु सावंत के गन में .
मारि घमासान करि सुंदर जुहरे श्याम,
           सोई सूरबीर रुपि रहै जाय रन में.