तस्वीरें जिनकी छपती है अख़बारों में
लोग वही मिल जाते हैं गलियारों में।
ख़ाक कफन और आग कहां मिल पायेगी
ज़िंदा ही जब चुने गये दीवरों में।
वो बाज़ारू कभी कहां कहलाते हैं
अक्सर जो घूमा करते बाज़ारों में।
एक सुबह का अक्स कभी दिखलाया था
ढूंढ रहा हूं आकाशी विस्तारों में।
संविधान की पोथी मुझे दिखाओ तो
क्या लिक्खा है वहां मूल अधिकारों में।
रोज योजना एक नई आ जाती है
और भीड़ बढ़ जाती कई कतारों में।
वोट लिया और सजा पालकी जा बैठे
वोट दिया और शामिल हुए कहारों में।