Last modified on 22 सितम्बर 2012, at 19:46

बैठी थी सखिन संग / गँग

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:46, 22 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गँग }} Category:पद <poeM> बैठी थी सखिन सँग,प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बैठी थी सखिन सँग,पिय को गवन सुन्यौ ,
            सुख के समूह में बियोग आगि भरकी.
गंग कहै त्रिविध सुगंध कै पवन बह्यो,
            लागत ही ताके तन भई बिथा जर की.
प्यारी को परसि पौन गयो मानसर कहूँ ,
           लागत ही औरे गति भई मानसर की.
जलचर चरे औ सेवार जरि छार भयो,
           तल जरि गयो,पंक सूख्यो भूमि दर की.