Last modified on 23 सितम्बर 2012, at 13:34

खुदा-१ /गुलज़ार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:34, 23 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह=रात पश्मीने की / ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बुरा लगा तो होगा ऐ खुदा तुझे,
दुआ में जब,
जम्हाई ले रहा था मैं--
दुआ के इस अमल से थक गया हूँ मैं !
मैं जब से देख सुन रहा हूँ,
तब से याद है मुझे,
खुदा जला बुझा रहा है रात दिन,
खुदा के हाथ में है सब बुरा भला--
दुआ करो !
अजीब सा अमल है ये
ये एक फ़र्जी गुफ़्तगू,
और एकतरफ़ा--एक ऐसे शख्स से,
ख़याल जिसकी शक्ल है
ख़याल ही सबूत है.