Last modified on 23 सितम्बर 2012, at 18:36

फ़सादात-५ /गुलज़ार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:36, 23 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह=रात पश्मीने की / ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आग का पेट बड़ा है!
आग को चाहिए हर लहजा चबाने के लिये
                   खुश्क करारे पत्ते,
आग कर लेती है तिनकों पे गुजारा लेकिन--
आशियानों को निगलती है निवालों की तरह,
आग को सब्ज हरी टहनियाँ अच्छी नहीं लगतीं,
ढूंढती है, कि कहीं सूखे हुये जिस्म मिलें!

उसको जंगल कि हवा रास बहुत है फिर भी,
अब गरीबों कि कई बस्तियों पर देखा है हमला करते,
आग अब मंदिरों-मस्जिद की गजा खाती है!
लोगों के हाथों में अब आग नहीं--
आग के हाथों में कुछ लोग हैं अब