इनका पूरा नाम गोरेलाल पुरोहित था और ये मऊ,बुंदेलखंड के रहने वाले थे. इन्होने प्रसिद्ध महाराज छत्रसाल की आज्ञा से उनका जीवन चरित दोहों चौपाईयों में बड़े विस्तार से किया है.इस पुस्तक में छत्रसाल का संवत १७६४ तक का ही वृतांत है. इससे यह अनुमान होता है कि या तो यह ग्रन्थ अधूरा ही मिला है या फिर लाल कवि कि मृत्यु छत्रसाल से पहले हो गई थी. इतिहास कि दृष्टि से 'छत्रप्रकाश' बड़े ही महत्व की पुस्तक है. इसमें घटनाएँ सच्ची और ब्योरे ठीक ठीक दिए गए हैं. यह ग्रन्थ नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हो चुका है. ग्रन्थ की रचना प्रौढ़ और काव्य गुणयुक्त है.लाल कवि में प्रबंधपटुता पूरी थी