Last modified on 9 दिसम्बर 2012, at 21:06

उद्धारक मणिलाल / जनार्दन कालीचरण

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:06, 9 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जनार्दन कालीचरण |संग्रह= }} [[Category:कव...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इतिहास के पन्नों पर
जब छाया था अमा का अंधकार
दास्ता की लोह-बेड़ी में जब
जकड़े थे बाप-दादे हमारे
खून की घूंट पी-पी कर जब
सह लेते थे वे सब
नंगी पीठ पर कोड़ों की बौछार ।
आये थे करने तुम उनका उद्धार ।।
गांधी से नव प्रेरणा का जल पाकर
गुजरात के लाल मगनलाल मणिलाल
स्वार्थ-लोभ की होली जलाकर
साहस का संबल हाथ लिये
ज्ञान के मजबूत हथौड़े से
निर्दय-निष्ठुर गोरों के शिकंजों को
तोड़ने सागर के इस पार ।
आये थे करने पूर्वजों का उद्धार ।।
आर्य देश से आये कुलियों को
नवोत्थान का शुभ संदेश देने
अन्याय-रात्रि के सूने प्रांगण में
मानव-मुक्ति की किरण फैलाने
हिंदुस्तानी पत्रिका चलाकर
करते थे हिंदी का प्रचार
आये थे करने पूर्वजों का उद्धार ।।
दक्षिण के इस मारिच द्वीप में
गोरों की शक्कर की लंका में
पवन पुत्र वीर हनुमान के जैसे
अशोक वाटिका में घुसकर
जूझ जाते थे दुश्मनों से अकेले
तोड़ देते थे उनके तर्क के तार ।
आये थे करने पूर्वजों का उद्धार ।।
ओ मेरे निर्भीक वीर सेनानी ।
मॉरीशस में मुक्ति के बीज बोने बाले
दबे हुए हैं तुम्हारे उपकारों से
आती है जब-जब याद तुम्हारी
चढ़ा देते हैं श्रद्धा के दो फूल बार-बार ।
आये थे करने पूर्वजों का उद्धार ।।