Last modified on 9 दिसम्बर 2012, at 21:18

बसन्ती बहार / जनार्दन कालीचरण

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:18, 9 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जनार्दन कालीचरण |संग्रह= }} [[Category:कव...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बसन्ती बहार में समीरण उदार हैं
कानन के केशों का सुमन से श्रृंगार है
जल की उमंगों से उठता फुहार है
जीवन के उद्गार से यौवन का उभार है । ।। बसन्ती बहार …
शाखाओं के नर्तन में पवन उदार है
किसलय की चंचलता में स्वर का गुंजार है
पुष्पों की हंसी में सुगन्ध का विस्तार है
गुलमोहर की लाली में सुहागन का मनुहार है ।।
बसन्ती बहार…
चांदी-सी चांदनी में कला का प्रसार है
चिड़ियों की चीं-चीं में संगीत का संचार है
रात्रि के नयनों में निद्रा का खुमार है
जग के सौन्दर्य में कर्त्ता का प्यार है ।। बसन्ती बहार…