टूटे तारों को जोड़ना है
बरसात के ठण्डे में सिकुड़े
धूप की तपिश से ज़ंगे
अणुओं को
फिर समेटना है
एक-एक करके
चुन-चुनकर
अन्धेरी राह की धुन्धली रोशनी की सहायता से
शायद इस प्रयास के प्रयास में
मैं न दिखूँ
मेरी आवाज़
धीमी पड़ जाए
पर मैं हूँ
यहीं कहीं
किश्तों को समेटे
फिर से उज्याले को लाने में
थोड़ा व्यस्त ।