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कविता! / महेश रामजियावन

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कविता !
केवल गुलाब की एक पंखुड़ी नहीं है
फूलों का गुच्छा भी है
चमेली का हार भी है
बसन्त में बागों की बहार भी !

कविता !
बर्फीली ढलानों की सर्दी नहीं
गरम उनी कोट भी है
आग की चिनगारी भी है
अंगार भी
पिनातोवो की ज्वालामुखी भी !

कविता
केवल कोयल की कूक नहीं
बालक की मुस्कान भी है
मधुर बयार भी है
नयी नवेली का श्रृंगार भी है !

कविता !
सिर्फ विरहिणी की आंखों के आंसू नहीं
झर-झर निर्झर भी है
घायल हिरणी के सीने से बहता रक्त भी है
युद्ध-स्थल में मृत सैनिक के घाव से बहता पीप भी !

कविता !
सिर्फ मेघों का गर्जन नहीं
उमड़ता तुफान भी है
सुनामी का प्रलयंकर उफन भी है
दहकता तोप का गोला भी है
चट्टानों से टकराता ज्वारभाटा भी है
हिरोशिमा और नागासाकी की उफनती ज़हरीली धुआं भी !