Last modified on 11 दिसम्बर 2012, at 07:43

हमारा गणतंत्र / मुनीश्वरलाल चिन्तामणि

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:43, 11 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुनीश्वरलाल चिन्तामणि |संग्रह=अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कौन तंत्र है वह ?
जो जन-जन में मुस्कान बाँटे ?
जो हर साँस को सौरभ युक्त कर दे ?
हर किसी के द्वार पर फूल बिखेरे ?
यदि वह गणतंत्र है तो
अपेक्षा उससे यही है
वह श्रम की बूँदों का
सही मूल्यांकन करके दिखाए
वह मानवता के घावों को
सहला के दिखाए
ऐसा करके वह
मेरे देश की आत्मा को
गौरव का अनुभव करा दे

ठीक है, आज चमकी है यहाँ
इन्द्रधनुष-सी आशा-अभिलाषा
पर कहाँ समझ में आई है
लोगों को 'राष्ट्र' की परिभाषा
यदि यह गणतंत्र
भेद-भाव की कलुष-कालिमा को
मिटा के बताए
पीड़ा की भँवर में
डूबते को बचाए
ऐसा करके वह
मेरे देश की आत्मा को

गौरव का अनुभव करा दे

ठीक है
आज अपना देश
गणतंत्र बना है
संसार की दृष्टि में वन्दनीय बना है
पर मेरे सहयात्री कवि बन्धुओ ।
देखना तो यह है कि
हमारे जीवन-मूल्य
डोडो के कंकाल की तरह
मात्र प्रदर्शन की चीज़ें
बनकर रह न जाएँ

ठीक है
गणतंत्र, अर्थ शक्ति का मंत्र है
राष्ट्र-भक्ति का मूल मंत्र भी है
पर देखना तो यह है कि
यह दलित जनों का भी तंत्र बने
और ऐसा करके वह
मेरे देश की आत्मा को
गौरव का अनुभव करा दे

यह ठीक है

गणतंत्र हमारे पूर्वज़ों के श्रम का फल है
स्वतंत्र मॉरीशस के वासियों की
अनवरत साधना का फल है ।
पर कवियों का योगदान नकारा कैसे जा सकता है ?
यकीन मानिए
कवि गण बिना कारण ही
अपने समय से विद्रोह नहीं करते
यदि समाज में शोषित-पीड़ित लोग नहीं होते
तो कवि गण
क्रांति की मशाल लेकर आगे नहीं बढ़ते
लोगों के अहम और अलगाव की भावना पर
निर्मम प्रहार नहीं करते
हर युग में कविगण
समाज के दर्पण रहे हैं ।
हमारे गणतंत्र से यही अपेक्षा है कि वह

कवियों की इस भूमिका को स्वीकारे
और ऐसा करके वह
मेरे देश की आत्मा को
गौरव का अनुभव करा दे ।