धूप वाले दिन
कवि: देवेन्द्र आर्य
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शील ने कितने चुभोए कोहरे के पिन अलगनी पर टँक गए लो, धूपवाले दिन । ठुमकती फिरती वसंती हवा उपवन में, गीत गातीं कोयलें मदमस्त मधुबन में । फूल पर मधुमास करता नृत्य ता धिन-धिन अलगनी पर टँक गए लो, धूपवाले दिन । पीतवसना घूमती सरसों लगा पाँखें, मस्त अलसी की लजाती नीलमणि आँखें । ताल में धर पाँव उतरे चाँदनी पल छिन अलगनी पर टँक गए लो, धूपवाले दिन । दूर वंशी के स्वरों में गूँजता कानन, वर्जना टूटी खिला सौ चाह का आनन । श्याम को श्यामा पुकारे साँस भर गिन-गिन अलगनी पर टँक गए लो, धूपवाले दिन ।