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याद / नीना कुमार

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हर कोशिश-ऐ-ज़ुल्मत यूँ बेअसर हो गई
के कहीं किसी शय को जैसे खबर हो गई
ज़ीस्त ने फिर दस्तक दी अजल-गिरफ़्ता को
और एक याद की अंगड़ाई से सहर हो गई