Last modified on 26 फ़रवरी 2013, at 20:16

अदब ने दिल के तक़ाज़े उठाए हैं / यगाना चंगेज़ी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:16, 26 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यगाना चंगेज़ी }} {{KKCatGhazal}} <poem> अदब ने द...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अदब ने दिल के तक़ाज़े उठाए हैं क्या क्या
हवस ने शौक़ के पहलू दबाए हैं क्या क्या

न जाने सहव-ए-क़लम है कि शाहकार-ए-क़लम
बला-ए-हुस्न ने फ़ितने उठाए हैं क्या क्या

निगाह डाल दी जिस पर वो हो गया अँधा
नज़र ने रंग-ए-तसर्रुफ़ दिखाए हैं क्या क्या

इसी फ़रेब ने मारा के कल है कितनी दूर
इस आज कल में अबस दिन गँवाए हैं क्या क्या

पहाड़ काटने वाले ज़मीं से हार गए
इसी ज़मीन में दरिया समाए हैं क्या क्या

गुज़र के आप से हम आप तक पहुँच तो गए
मगर ख़बर भी है कुछ फेर खाए हैं क्या क्या

बुलंद हो तो खुले तुझ पे ज़ोर पस्ती का
बड़े-बड़ों के क़दम डगमगाए हैं क्या क्या

ख़ुशी में अपने क़दम चूम लूँ तो ज़ेबा है
वो लग़्ज़िशों पे मेरी मुस्कुराए हैं क्या क्या

ख़ुदा ही जाने ‘यगाना’ मैं कौन हूँ क्या हूँ
ख़ुद अपनी ज़ात पे शक दिल में आए हैं क्या क्या