Last modified on 27 फ़रवरी 2013, at 09:06

बाउल-गीत / प्रतिभा सक्सेना

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:06, 27 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना }} <poem> तेरे रंग डूब...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तेरे रंग डूबी, मैं तो मैं ना रही!

एक तेरा नाम, और सारे नाम झूठे,
ना रही परवाह जग रूठे तो रूठे
सुख ना चाहूँ तो से, ना रे, ना रे ना, नहीं!

एक तु ही जाने और जाने न कोई,
जाने कौन अँखियाँ जो छिप-छिप रोईं
एक तू ही को तो, मन और का चही!

बीते जुग सूरत भुलाय गई रे,
तेरी अनुहार मैं ही पाय गई रे .
पल-छिन मैं तेरे ही ध्यान में बही!

एक खुशी पाई तोसे पिरीतिया गहन,
तू ना मिला, मिटी कहाँ जी की जरन,
तेरे बिन जनम, बिन अगन मैं दही!

कि मैं झूठी, कि ये वचन झूठा,
जा पे सनेह सच, मिले सही क्या
रीत नहीं जानूँ, बस जानूँ जो कही!