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वसीयत / अनीता कपूर

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हमारे
पूर्वजों की सारी
वसीयत
हमारी ही तो है
उनका अस्तित्व व संस्कृति हमारी ही
धरोहर है
फिर क्यों हम
आँखें मूँदें बैठे हैं
कितना अजीब व सुखद है
यह एक शब्द
पूर्वज
गौर से झांकें
और डूबकर
देखें
तो सारा अतीत हममें ही छिपा था
वर्तमान भी हमसे है
भविष्य भी हमसे होगा
सुनहरा भविष्य
तब ही होगा
अगर
हम
पूर्वज शब्द
रखें याद
तो दोबारा
हर युग में
राम, नानक
बुद्ध और महावीर होंगें
जीवन धारा वही है
रसगंगा भी वही है
फिर यह
घाट
अलग अलग
क्यों?